शकुन्तला
क्रोध को जीता नहीं, और दे दिया अभिशप्त जीवन। शकुन्तला जब बैठ कुटिया में, कर रही थी, मधुर चिंतन। दोष उसका बस यही था, देख न पाई प्रलय को, भावना में बह गयी, पी गयी पीड़ा के गरल को। निर्दोष शकुन्तला सोच रही, वो किस समाज का हिस्सा है? अपने अस्तित्व को खोज रही, ये…