संदेश

in poems

गणतंत्र की सुनहरी,

फिर शाम आ रही है।

सूरज की लालिमा यह,

संदेश गा रही है ।

हम सब हैं भाई बंधु ,

यह देश है हमारा, अक्षुण्ण है,

जिसकी संस्कृति,

अनमोल भाईचारा।

मिलजुल कर हम जिएंगे,

फिर ज़हर ना पिएंगे,

इंसानियत के दुश्मन,

हमको नहीं गवारा।

चलो यह प्रण भी ले लें ।

अभी इसी घड़ी में,

जीवन समर्पित होगा,

वतन की बेहतरी में।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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