क्या लिखूं?
तुम्हारे दर्द को पी लूं , उन्हे कुछ राहतें दे दूं। मैं किस्सा ए कहर लिखूं , या तेरा सबर लिखूं। भिगोया है, कलम को मैंने, ज़ज़्बातो की स्याही से , सच्चाई दर-बदर कर दूं? या फिर मौन अनवरत रखूं।
तुम्हारे दर्द को पी लूं , उन्हे कुछ राहतें दे दूं। मैं किस्सा ए कहर लिखूं , या तेरा सबर लिखूं। भिगोया है, कलम को मैंने, ज़ज़्बातो की स्याही से , सच्चाई दर-बदर कर दूं? या फिर मौन अनवरत रखूं।
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है।
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
मेरे बाबा, जिनके गुस्से से घर में मेरी मां और सारे भाई बहन डरते थे । वो जब किसी बात
वैदिक ज्ञान है, वरदान। इन बातों का रखें ध्यान, नित्य योग और ध्यान करें, थोड़ा सा ‘प्राणायाम’ करें। ‘यम’, ‘नियम’ और ‘आसन’ से, जीवन में आनंद भरें, ‘प्रत्याहार,’ ‘धारणा’ से, स्वयं का उत्कर्ष करे, ‘ध्यान’, ‘समाधि’ से फिर जुड़ कर, जीवन परमानंद करे।
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है।
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
आँखों में लिए प्रश्न बैठी ,इन्तज़ार की चौखट पर , वो समय कहाँ, कब आएगा ,जो मेरा भाग्य जगाएगा। हिन्दी
खेल का मैदान हो, या युद्ध का आह्वान हो, खेल कर पछाड़ दो, युद्ध हो दहाड़ दो। फिर क्रिकेट की बात हो, या कश्मीर पर आघात हो। धूल हम चटाएगें, प्रतिद्वंद्वी उठ न पाएंगे। शेर ए हिन्द सज्ज हो, जीत में निमज्ज हो।
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है।
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
आँखों में लिए प्रश्न बैठी ,इन्तज़ार की चौखट पर , वो समय कहाँ, कब आएगा ,जो मेरा भाग्य जगाएगा। हिन्दी
सुनंदा बुआ, जिन्हें पूरा मोहल्ला इसी नाम से पुकारता था, यहां तक कि तीन पीढ़ियों तक के लोग यानि कि बाप, बेटे और पोते सभी लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे। किसी के घर की कितनी भी खुफिया जानकारी हो, सुनंदा बुआ के आंख,कान,नाक से छिप नहीं सकती थी। कोई कितना भी अपने घर…
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
उत्तराखंड की यात्रा के दौरान मैं नैनीताल के जिस होटल में रुकी थी ,उस होटल से वापसी वाले दिन सीढ़ियों
A stort about society marriage system
🔥 आग में तपकर ही सोना भी, अपना मूल्य बताता है। तेज धार पर घिस घिसकर ही, हीरा चमक दिखाता है। जीवन भी कुछ ऐसा ही है। जो हमको ये सिखाता है, संघर्ष आंच में तपकर मानव, उच्च शिखर पर जाता है। देश का सेवक बनकर जो, जनकल्याण कर पाता है। तभी तो ‘चौकीदार’ भी,…
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है।
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
मेरे बाबा, जिनके गुस्से से घर में मेरी मां और सारे भाई बहन डरते थे । वो जब किसी बात
अमावस का घनघोर अंधेरा और बांसुरी पर बजती कोई मीठी सी धुन ,ना जाने किस रूह को किसकी तलाश है, किसका दर्द सिसकियां लेता है, रोज रात के सन्नाटे में, यह किस रूह की तड़प बांसुरी की धुन में सुनाई देती है, यहां के लोगों से सुना है, कि किसी बांसुरी वादक की रूह यहां…
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
उत्तराखंड की यात्रा के दौरान मैं नैनीताल के जिस होटल में रुकी थी ,उस होटल से वापसी वाले दिन सीढ़ियों
A stort about society marriage system
बात दिल की तुम अपनी, छुपाया न करो। बात जो भी हो, वो तुम बताया करो। बातों बातों में ही, रूठ जाती हो, दर्द के समंदर में, डूब जाती हो। कभी रेत के सहरा पे भी, आ जाया करो। रेत में भी खिलते हैं, कांटों पे फूल, जिन्हें देखकर उम्मीदें, जगाया करो। हर बात का…
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है।
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा, अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
उत्तराखंड की यात्रा के दौरान मैं नैनीताल के जिस होटल में रुकी थी ,उस होटल से वापसी वाले दिन सीढ़ियों