ये आफ़त ये झंझा तूफ़ानों का रेला,
कहाँ ले के आया ,ये मरघट का खेला।
समझ में न आए ,ये हो क्या रहा है ?
प्रकृति का जो ऐसा क़हर हो रहा है !
समय कह रहा है ,जड़ों से जुड़ो तुम,
नहीं तो कहीं फिर प्रलय हो ना जाए।
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह