गुलाब का संदेश

in poems

मेरी बगिया का अधखिला गुलाब,

नव ऊष्मा से पूरित गुलाब ,

कुछ मुस्काता सा बोल रहा,

अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,

खिलने के पहले कांटो संग

ये सफर पूर्ण किया मैंने ,

दुनिया को दिखती सुंदरता,

लेकिन जो दर्द सहा मैंने,

उसकी बातें भी क्या करना?

दुनिया वालों को ये कहना,

खिलने वाली कलियां चुनना।

जो अंतहीन संघर्षों की

शैय्या पर सो कर आता है ,

विकसित होकर, खिलकर वो ही

अपनी सुगंध बिखराता है।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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