मेरी बगिया का अधखिला गुलाब,
नव ऊष्मा से पूरित गुलाब ,
कुछ मुस्काता सा बोल रहा,
अपनी पंखुड़ियां खोल रहा,
खिलने के पहले कांटो संग
ये सफर पूर्ण किया मैंने ,
दुनिया को दिखती सुंदरता,
लेकिन जो दर्द सहा मैंने,
उसकी बातें भी क्या करना?
दुनिया वालों को ये कहना,
खिलने वाली कलियां चुनना।
जो अंतहीन संघर्षों की
शैय्या पर सो कर आता है ,
विकसित होकर, खिलकर वो ही
अपनी सुगंध बिखराता है।