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poems - page 6

सावन

in poems

मन ने फिर आवाज लगाई, अब तो रहे न बाबा-आई। जो कहते सावन में आओ, भाई को राखी बंधवाओ। इस आमंत्रण से गर्वित हो, जब-जब मैं पीहर को जाती, आंखों में नेह-अश्रु लिए तब, बाबा-आई को मैं पाती। न वैसा आमंत्रण है,अब। न वैसा त्योहार……। सम्बन्धों के खालीपन से, अनुगुंजित आवास……।

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भरम

in poems

जो उम्मीदों के गठ्ठर, उठाए बैठे हैं, वो रिश्तों के चमन में मुरझाए बैठे हैं। खुद की कुव्वत का जिन को,भरम हो रहा, उनको लगता है,कि वो आसमां को उठाए बैठे हैं।

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बात

in poems

बात निकली है तो, बात पे बात निकलेगी। बीती बातों की पूरी, बारात निकलेगी। शिकवा उनको भी है, शिकायत हमको भी है। बढ़ेगी जो बात तो, आंखों से बरसात निकलेगी भावों के पत्ते तो, झड़ ही गये। हो दिल में बची आस, तो मुलाकात निकलेगी।

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रिश्तों के हिम

in poems

जो मैंने कहा था, वो आप ने सुना नही, जो मैंने कहा नहीं, वो आप ने सुना था। रिश्तों के ये जो बाने हैं, वो हमने खुद ही ताने है। थोड़ा थोड़ा आगे बढ़कर, रिश्तों के हिम को पिघलाएं, मैं थोड़ा सा आगे आऊं, वो थोड़ा सा पीछे जाएं, फिर अपने इस तालमेल को, ये…

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बरखा रानी

in poems

बरखा रानी तेरा पानी, हर मन को हरषाता। तेरा आना उमड़ घुमड़ कर, तन पुलकित हो जाता। बरखा बोली, ‘धरती रानी’, तेरा जीवन,मेरा पानी, फिर क्यूं व्यर्थ बहाती, ज्यादा बरसूं, कद्र नहीं, कम बरसूं, तो सब्र नहीं।  

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ध्वनियां

in poems

अक्सर हम वो सुन नहीं पाते, जो ये दुनिया कहती हैं। और कभी हम बिना कहे भी, बहुत कुछ सुन जाते है। वे ध्वनियां जो ध्वनित नहीं हो, ज्यादा शोर मचाती है। दिन का चैन उड़ा देती हैं, रातों को जगाती हैं।

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चैरेवेति

in poems

“चैरेवेति चैरेवेति” उपनिषदों का है, आख्यान। गुरु शिष्य परंपरा का, रखें हम सदा ही मान। अंधकार का तोड़े दम्भ, और बने प्रकाश स्तम्भ लक्ष्य भी प्रशस्त हो, ज्ञान भी सशक्त हो। प्रात हो या रात हो, ज्ञान की ही बात हो, पुनर्जागरण लाएं हम, स्वर्णिम देश बनाएं हम।

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व्योम,……धरा से।

in poems

  हंस कर कहता, व्योम, धरा से। सूरज चांद सितारे, ये हैं मेरे सारे । तेरे अपने कौन ? बता मुझे, न रह मौन। धरती ने ली अंगड़ाई, फिर थोड़ी शरमाई, अगणित चांद सितारे मेरे, क्यूं जलता है भाई ? मोदी ने भारत चमकाया, राष्ट्रवाद परचम लहराया। जिसकी चमकीली ऊर्जा ने, ऊंच नीच का भेद…

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क्या लिखूं?

in poems

तुम्हारे  दर्द को पी लूं , उन्हे कुछ राहतें दे दूं। मैं किस्सा ए कहर लिखूं , या तेरा सबर लिखूं। भिगोया है, कलम को मैंने, ज़ज़्बातो की स्याही से , सच्चाई दर-बदर कर दूं? या फिर मौन अनवरत रखूं।

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अष्टांग योग

in poems

वैदिक ज्ञान है, वरदान। इन बातों का रखें ध्यान, नित्य योग और ध्यान करें, थोड़ा सा ‘प्राणायाम’ करें। ‘यम’, ‘नियम’ और ‘आसन’ से, जीवन में आनंद भरें, ‘प्रत्याहार,’ ‘धारणा’ से, स्वयं का उत्कर्ष करे, ‘ध्यान’, ‘समाधि’ से फिर जुड़ कर, जीवन परमानंद करे।  

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