ध्यान

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हमलोग उम्र लंबी करने में कामयाब हो गए हैं, लेकिन जीवन को आनंद पूर्ण बनाने में अभी तक अक्षम है। हम लोगों ने ऊंची अट्टालिकाएं  तो बनवा ली, लेकिन मन मंदिर का निर्माण नहीं कर पाए। जहां बैठकर साधना और ध्यान के कुछ पल दे सकें, मानव मन तब तक सुख के लिए भटकता रहेगा, जब तक वह स्वयं के भीतर उतरकर आत्मज्ञान, आत्म तत्व की खोज ना कर ले ।

बाहरी वस्तुएं, तृष्णा को अंतिम छोर तक ले जाती हैं, लेकिन ध्यान मनुष्य की शुद्ध चेतना को जागृत कर असीम शांति और आनंद प्रदान करता है। ध्यान एक ऐसी सरल प्रयासहीन प्रक्रिया है, जो मानव को शारीरिक और मानसिक ऊर्जा से पूर्ण करती है। तथा विवेक को जागृत करती है। अनवरत किया गया ध्यान हमारा जीवन बदल सकता है, बशर्ते हमारी चेतना की मिट्टी में विवेक का बीज हम स्वयं बोएं।

ध्यान स्वयं को स्वचेतना से मिलाने की ऐसी अनूठी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विवेक शक्ति, निर्णय शक्ति तथा क्रिया शक्ति का वास्तविक रूप से प्रादुर्भाव होता है। दुनिया में ऐसी कोई चुनौती नहीं, जो चेतनावान व्यक्ति पूरी ना कर पाए, बस अपनी जिज्ञासा की अग्नि में ध्यान का ईंधन डालें और उस चेतना से निकलने वाली ऊर्जा द्वारा अपने जीवन को प्रकाशित कर लें।

इस संसार में इच्छाएं ही सर्वाधिक दुख देती हैं, लेकिन यदि हम अपने जीवन की दिशा को ध्यान की ओर मोड़ दे, तो यही इच्छाएं संयमित होकर सुख प्रदान करने वाली हो सकती हैं।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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