नि:शब्द

in poems

नि:शब्द आज ये रात है,

क्या आज नयी कोई बात है?

क्यूं चांद तन्हा सा दिख रहा?

तारे भी आज उदास है।

क्या आज नयी कोई बात है?

हां,….. तुम गये जो प्रवास को,

कह गए आस की बात जो,

हां, इस लिए मन यूं उदास है,

हां, यहीं नयी वो बात है।

जब साथ थे, तो पता न था,

कि, तारें उदास भी होते हैं,

जब चांद अंधेरों में डूबता,

तब नि:शब्द रात भी होती है।

 

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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