जीवन के रंग

in poems

जब मां बाबा के साथ रहे,

तब सतरंगी त्योहार रहे।

जब जीवन में साथी आया,

तब नया दृष्टिकोण पाया।

फिर पीछे कुछ छूट गया,

मन के अंदर कुछ टूट गया।

पिछले धुंधले परिदृश्य आज,

मुखरित होकर कर रहे बात,

कोई नही है अब आसपास,

जिसका होना कुछ लगे खास।

मत पूछो इस इक जीवन में,

कितने रंगों को देखा है।

इन्द्रधनुष के सात रंग ने,

सत्तर रंग समेटा है।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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