मातृभूमि

in poems

वो जीना भी क्या जीना है,

जो देश हित में जी न सके,

वो मरना भी क्या मरना है,

जो मातृभूमि पर मर न सके।

कितने अनजाने वीरों ने,

अपने जो रक्त बहाएं हैं,

इस देश के मिट्टी पानी में,

उन वीरों की गाथाएं हैं।

झांसी की मिट्टी कहती हैं,

हर बाला लक्ष्मीबाई हो,

पंजाब की मिट्टी कहती हैं,

हर बालक वीर भगत सिंह हो।

वीर मराठों की गाथाएं ,

हमसब सुनते ही आए हैं,

जब देश पे आफ़त आई है,

तब वीर शिवा बन पाए हैं।

इस देश की गर्म हवाएं भी,

हुंकारी ऐसी भरती हैं,

मातृभूमि के लिए जिएं,

खुद्दारी इतनी भरती हैं।

 

 

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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