बचपन
मस्तमौला फक्कड़पन, मासूमियत भरा बचपन, महंगे खिलौनों की दरकार नहीं। माटी से काम चला लेंगे, हम आनंद मना लेंगे। ये भोलापन,ये अल्हड़पन, जिसको कहते हैं,सब बचपन।
मस्तमौला फक्कड़पन, मासूमियत भरा बचपन, महंगे खिलौनों की दरकार नहीं। माटी से काम चला लेंगे, हम आनंद मना लेंगे। ये भोलापन,ये अल्हड़पन, जिसको कहते हैं,सब बचपन।
कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है। ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना है। जब साथ हो
आस-पास बिखरे रंगों में, बादल पर्वत और उपवन में, जीवन विस्तारित होता हर कण में, इनमें गुंजित ध्वनियां देखो क्या
हर सुबह उम्मीदों का सूरज, उगता ढलता दे जाता है , कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये, कुछ अरमानों के
”रहे ना कोई सपने बाकी, नाप ले तू अंतरिक्ष की थाती।” कहते रहते, बाबा मेरे, जब उनके पास मैं जाती, उनके ऊंचे सपनों को मैं, देख-देख घबराती। आते जाते डांटा करते, पढ़ती क्यों नहीं दिखती, जब देखो तब बातों में ही, समय नष्ट क्यों करती, जो बातें तब थी चुभती, आज समझ में आती,…
कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है। ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना है। जब साथ हो
आस-पास बिखरे रंगों में, बादल पर्वत और उपवन में, जीवन विस्तारित होता हर कण में, इनमें गुंजित ध्वनियां देखो क्या
हर सुबह उम्मीदों का सूरज, उगता ढलता दे जाता है , कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये, कुछ अरमानों के
हमलोग उम्र लंबी करने में कामयाब हो गए हैं, लेकिन जीवन को आनंद पूर्ण बनाने में अभी तक अक्षम है। हम लोगों ने ऊंची अट्टालिकाएं तो बनवा ली, लेकिन मन मंदिर का निर्माण नहीं कर पाए। जहां बैठकर साधना और ध्यान के कुछ पल दे सकें, मानव मन तब तक सुख के लिए भटकता रहेगा,…
मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती
याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक
मैं उड़ूंगी, गिरूंगी, संभलूंगी, उठूंगी, लेकिन तुम मुझे मत बताओ , कि मुझे कैसे चलना है? मैं हॅंसूगी, खिलखिलाऊॅंगी, रोऊॅंगी,
जब राम के बाणों से धराशाई रावण मरणासन्न था, तब राम ने लक्ष्मण से कहा, कि लक्ष्मण रावण अब कुछ ही देर का मेहमान है, उसके साथ उसका अमूल्य ज्ञान भी समाप्त हो जाएगा। इसके पहले तुम उसके पास जाकर उसके ज्ञान से स्वयं को आलोकित कर लो। जब लक्ष्मण रावण के सिरहाने जाकर खड़े…
कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है। ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना है। जब साथ हो
आस-पास बिखरे रंगों में, बादल पर्वत और उपवन में, जीवन विस्तारित होता हर कण में, इनमें गुंजित ध्वनियां देखो क्या
हर सुबह उम्मीदों का सूरज, उगता ढलता दे जाता है , कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये, कुछ अरमानों के
अहिंसा को यदि एक शब्द का महाकाव्य कहा जाए, तो उसके अनेक छंद इसी शब्द से प्रगट हो सकते हैं। महात्मा गांधी अहिंसा का प्रथम मानव छंद है ।गांधी मानवता के अलंकार हैं । 2 अक्टूबर को इस महा मानव ने जन्म लिया था। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को अहिंसा दिवस भी घोषित किया…
मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती
याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक
जो उम्मीदों के गठ्ठर, उठाए बैठे हैं, वो रिश्तों के चमन में मुरझाए बैठे हैं। खुद की कुव्वत का जिन
स्वाधीनता सिर्फ एक शब्द नहीं, अनंत प्रतिक्षाओं,अनगिनत बलिदानों ,अतृप्त प्यास से उपजी एक जीवन यात्रा है। जिसमें विराम के लिए समय कहां ?स्वाधीनता के लिए तड़प की अलख यदि हमारे क्रांतिकारियों ने अपने खून देकर जगाई ना होती,तो हम और आप तो होते, लेकिन यह स्वाधीनता की सुगंध कहां होती? इस स्वाधीनता की सुगंध को…
मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती
हर सुबह उम्मीदों का सूरज, उगता ढलता दे जाता है , कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये, कुछ अरमानों के
याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक
समय की थोड़ी सी इकाइयो का लेखा-जोखा नहीं, जीवन का सौंदर्य है बचपन ।आज बचपन की मोहक स्मृतियां दस्तक दे रही हैं ,इसलिए सुधी पाठकों से स्मृतियां सांझा करने के लिए लेखनी उतावली हो रही है। गर्मी की छुट्टियां और शरारतो का दौर शुरु, धूल की परवाह किए बिना आंधियों में अमिया चुनने दौड़ पड़ना,…
मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती
राघव की उम्र यही कोई 18 वर्ष की रही होगी ,घर में सिर्फ दादी और पोता राघव |आपस में लड़ते
संस्कृत भाषा में एक कहानी है, “तत् त्वम् असि” जिसमें ऋषि आरुणि अपने पुत्र श्वेतकेतु का अहंकार दूर करने के लिए उसे बरगद के बीज का दृष्टांत दिखाकर समझाते हैं, कि ‘एक बीज में विकास की अनंत संभावनाएं होती हैं, जो अनुकूल मिट्टी पानी और धूप पाकर विशाल वृक्ष का रूप ले लेती है। बीज…
मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती
याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक
जो उम्मीदों के गठ्ठर, उठाए बैठे हैं, वो रिश्तों के चमन में मुरझाए बैठे हैं। खुद की कुव्वत का जिन