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चंद शेर……!

in poems

फुर्सत के लिए फुर्सत, तो निकालो यारों!
जब वक्त निकल जाएगा, तो खाक मिलेंगे।।
हम वैसे तो दुनिया के रवायत से हैं, वाक़िफ। तुम ही ना रहे, इस दुनिया का क्या करें ?
तुम आओगे एक दिन तो, मालूम है मुझे,
पर मैं ही ना रहूं, उस दिन का क्या करें ?दौलत की जिस ढेर पर बैठी है, ये दुनियां !लख्ते़ जिगर ही पास नहीं, ढेरी का क्याकरें ? हो इश्क का एहसास और परवाह की खुशबू, जब ये ही दफा हो गए, शोहरत का क्या करें?

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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