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February 2020

विडंबना

in poems

रक्तिम है कुरुक्षेत्र की माटी , चीख रही है अब भी घाटी, कर्तव्यों से आंख मूंदकर, बन जाना गांधारी , ऐसी थी क्या लाचारी ? लालच के दावानल, जब अपनों को झुलसाएंगे , कलयुग की इस विडंबना में, कृष्ण कहां से आएंगे ? सिंहासन पर यदि विराजित, धृतराष्ट्र हो जाएंगे , प्रतिभाओं के चीरहरण पर…

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शांता ताई

in Stories

शांता ताई  उम्र के उस पड़ाव पर थी, जब व्यक्ति अपने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियां पूर्ण कर अपने जीवन के फुर्सत के क्षणों से उपजे खालीपन को अपनों के सानिध्य से और भगवत भजन से भर लेना चाहता है| लेकिन रिक्तता कि अनुभूतियों से रिक्त हो पाना, उच्च कोटि का अध्यात्म होता है| जिसे पाना,…

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