सोचा था कि…….,
जब कभी वक्त नहीं होगा,
एहसास की लहरों पर,
मैं खुद को भिगो लूंगी ।
जब फूल भी ना होंगे
तब खुश्क से मौसम में,
पत्तों के खड़कने पर,
संगीत बना लूंगी।
पेड़ों पर आएगी,
जब भी नयी तरुणाई,
नव शब्द की माला से,
नए गीत बना लूंगी।
अब वक्त के बहते हुए,
दरिया में ही बहती हूं,
ना वक्त ठहरता है,
न मैं ही ठहरती हूं।
रहना है साथ मेरे,
तो एहसास बनके आओ,
इस वक्त के दरिया में,
मेरे संग बहते जाओ।