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Vandana Rai - page 9

Vandana Rai has 146 articles published.

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

शकुन्तला

in poems

क्रोध को जीता नहीं, और दे दिया अभिशप्त जीवन। शकुन्तला जब बैठ कुटिया में, कर रही थी, मधुर चिंतन। दोष उसका बस यही था, देख न पाई प्रलय को, भावना में बह गयी, पी गयी पीड़ा के गरल को। निर्दोष शकुन्तला सोच रही, वो किस समाज का हिस्सा है? अपने अस्तित्व को खोज रही, ये…

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जीवन के रंग

in poems

जब मां बाबा के साथ रहे, तब सतरंगी त्योहार रहे। जब जीवन में साथी आया, तब नया दृष्टिकोण पाया। फिर पीछे कुछ छूट गया, मन के अंदर कुछ टूट गया। पिछले धुंधले परिदृश्य आज, मुखरित होकर कर रहे बात, कोई नही है अब आसपास, जिसका होना कुछ लगे खास। मत पूछो इस इक जीवन में,…

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नि:शब्द

in poems

नि:शब्द आज ये रात है, क्या आज नयी कोई बात है? क्यूं चांद तन्हा सा दिख रहा? तारे भी आज उदास है। क्या आज नयी कोई बात है? हां,….. तुम गये जो प्रवास को, कह गए आस की बात जो, हां, इस लिए मन यूं उदास है, हां, यहीं नयी वो बात है। जब साथ…

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वक्त का दरिया

in poems

सोचा था कि……., जब कभी वक्त नहीं होगा, एहसास की लहरों पर, मैं खुद को भिगो लूंगी । जब फूल भी ना होंगे तब खुश्क से मौसम में, पत्तों के खड़कने पर, संगीत बना लूंगी। पेड़ों पर आएगी, जब भी नयी तरुणाई, नव शब्द की माला से, नए गीत बना लूंगी। अब वक्त के बहते…

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नारी

in poems

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मत भूलो

in poems

लिखित संविधान को, गणतंत्र के विधान को, मत भूलो, सशक्त करो। स्वाधीनता के अर्थ को, बलिदानी के रक्त को, मत भूलो,अनुरक्त बनो। हे भारत के वीर सपूतों, मत भूलो, उन भूलों को, जिनके कारण बर्बाद हुए, उन भूलों से ऊपर उठकर, फिर स्वर्णिम निर्माण करो।

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देशहित

in poems

वो जीना भी क्या जीना है, जो देश हित में जी न सके, वो मरना भी क्या मरना है, जो मातृभूमि पर मर न सके। कितने अनजाने वीरों ने, अपने जो रक्त बहाएं है, इस देश के मिट्टी पानी में, उन वीरों की गाथाएं हैं। झांसी की मिट्टी कहती हैं, हर बाला लक्ष्मीबाई हो, पंजाब…

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ज़न्नत

in poems

नि: शब्द धरा,आकाश मेघ, कर रहे सभी, सिर्फ प्रश्न एक, ज़न्नत की बातें , करते हो, मरते हो बस ज़न्नत के लिए, लेकिन ज़न्नत में रहते हो, क्या तुमको ये एहसास नहीं? ज़न्नत ज़न्नत, करते करते, तुम इतने रक्त बहाते हो, ज़न्नत जैसे कश्मीर को भी क्यूं दोज़ख बनवाते हो? आए हो, खाली हाथ ही,…

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पुलवामा अटैक

in poems

वो चार शेर ही काफी थे, जिनकी जड़े हिलाने को, इसलिए पीठ पर वार किया, औकात न थी, आजमाने को। जगे शेर से पंगा ले, ये कायर की औकात नहीं, छल छद्म ही जिनके खून में है, उन्हें सबक दे, सौगात नहीं। हुए हैं दो दो हाथ,जब जब, मानवता हारी है, अब उठो, युद्ध उदघोष…

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सड़क

in poems

खुली सड़क पर घूम रहा था, वो अनाथ बच्चा, मै बोली, तुम कुछ पढो,लिखो, यूं घूमना नहीं अच्छा । मै सड़क किनारे पला, बढ़ा, इस खुली सड़क पर सोता हूं। भूख से पिचका पेट लिए, भरने को इसे तरसता हूं। तुम बड़े लोग का पेट,जेब, हरदम रहता  है,भरा भरा, तभी तुम्हे तो दिखता है, हर…

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