मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती थी। अचानक मुझसे बातें करने लगा ,कहने लगा, कि तुम्हें याद है ?वो जाड़े के दिन ,जब तुम अपने खूब सारे भाई बहनों और माता पिता के साथ मेरे इर्द-गिर्द बैठकर घंटों मेरे साथ अपनत्व की गर्माहट लिए समय बिताया करती थी। तुम शायद भूल गई हो ,लेकिन मैं नहीं भूला। वह किस्से कहानियों का दौर, वह हंसी ठहाकों की ध्वनियां। जलती हुई अलाव की लकड़ियों में शकरकंद भूनकर अमृत तुल्य फल खाने जैसा संतुष्ट भाव। मुझे सब कुछ याद है। उसी अलाव की आंच में ही तो पक कर तैयार होता था, रिश्तों का अटूट बंधन ।अलाव की लकड़ियों से निकलता हुआ धुआं ,अपने साथ छोटे-मोटे झगड़ों और मतभेदों को हवा में उड़ा कर गुम कर देता था, और अलाव के आग की लपटें ठिठुरते सिकुड़ते रिश्तो में गर्माहट और अपनत्व की ऊर्जा भर देती थी। मेरी ओर देखो, तो सही। मैंने तुम्हें भावों का, संवेदनाओं का, कल्पनाओं का और असीमित वार्ताओं का खजाना देकर तुम्हारी लेखनी को आवाज दी है। तुम मुझे कैसे भूल सकती हो ?तुम्हारे जीवन यात्राओं में मैं हमेशा तुम्हारे पीछे खड़ा रहा ,ताकि जब कभी तुम्हारी जीवन ऊर्जाएं शिथिल होने लगे ,तब मैं अपनी गर्माहट से ,तुम्हारे अंदर नया जोश भर पाऊं ।लेकिन अपने जीवन की लंबी यात्राओं में तुम्हें मेरा साथ गवारा ना था। साल दर साल बीतते रहे, मैं यूं ही उपेक्षित सा घर के कोने में पड़ा ,अपने सुनहरे दौर के ख्यालों में डूबा हुआ, अपना वक्त बिता रहा था। अपनी परिस्थितियों से समझौता कर चुका था। फिर ये अचानक आज क्यों तुम्हें हमारी याद आई? क्या तुम्हें अपने आधुनिक यंत्रों पर भरोसा नहीं रहा ?या अकेले कमरे के सन्नाटों ने तुम्हारी नींद उड़ा दी हैं। या मेरी ऊष्मा की तरह उसमें वह गर्माहट ही नहीं ।या फिर “जैसे उड़ी जहाज का पंछी फिर जहाज पर आवे “वाली कहावत चरितार्थ होने को है! खैर जो भी हो ।मैं तो कुम्हार द्वारा निर्मित वह पात्र हूं, जो सिर्फ देना जानता है ।और यही मुझे कालजयी बनाता है ।शुभ रात्रि ।और मैं चौंक कर नींद से जाग गई।
जिज्जी
A stort about society marriage system