जो जस करि………!

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जब राम के बाणों से धराशाई रावण मरणासन्न था, तब राम ने लक्ष्मण से कहा, कि लक्ष्मण रावण अब कुछ ही देर का मेहमान है, उसके साथ उसका अमूल्य ज्ञान भी समाप्त हो जाएगा। इसके पहले तुम उसके पास जाकर उसके ज्ञान से स्वयं को आलोकित कर लो।

जब लक्ष्मण रावण के सिरहाने जाकर खड़े हुए, तो रावण ने जो पहली बात कही, वह यह कि जिसे ज्ञान प्राप्त करना होता है, वह गुरु के चरणों में नतमस्तक होता है, सिर पर सवार नहीं होता ।जब लक्ष्मण को अपनी भूल का भान हुआ, तब वह उसके पैरों की तरफ जाकर खड़े हुए और रावण ने उन्हें जीवन मंत्र दिया, कि कोई भी उत्तम विचार जो लोक कल्याण के लिए हो, उसे मूर्त रूप देने में ज्यादा समय बर्बाद मत करो।

जितनी  जल्दी कर सको कर डालो। लेकिन अनुचित कर्म करने से पहले सौ बार उसके दुष्परिणाम के विषय में सोच लो। रावण के कहे गए शब्द कुछ इस प्रकार थे, मैंने सोचा था, स्वर्ग तलक कोई सीढ़ी बनवाऊंगा। और शिव की जटा से गंगा को लंका में ले आऊंगा। पर आज आज करते करते रह गया मेरा वह शुभ कर्म। पर नारी चोरी करने का कर डाला काम बड़ी जल्दी। परिणाम उसी का यह पाया छोड़ा संसार बड़ी जल्दी।

रावण का एक गलत कदम ही उसके विनाश का कारण बना, अन्यथा रावण जैसा ज्ञानी और कुबेर के खजाने से संपन्न व्यक्ति, जिसके लिए कह सकते हैं, ‘”न भूतो न भविष्यति”‘ का ऐसा अंत हुआ कि, एक लाख पूत सवा लाख नाती, ता रावण घर दिया न बाती।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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