शेष प्रश्न

in poems

हैं शेष प्रश्न,कुछ जीवन में,
जो अनुत्तरित ही रहते है,
प्रतिपल घटते इस जीवन में,
जो अनुगुंजित से रहते है,
जीवन की दीर्घ किताबों में,
कुछ तो खोया खोया सा है,
कही अपनी भाषा शून्य हुई,
कही भाव न्यून ही रहता है ।
प्रचलित शिक्षा के बोझ तले,
मानव कुचला कुचला सा है,
मानवीय मूल्य का पता नहीं,
सब कुछ उथला उथला सा है,
जो शिक्षा सबको देशप्रेम और करूणा नहीं सिखाती हो,
जो शिक्षा सबको बस केवल धन के पीछे दौड़ाती हो,
उस शिक्षा पर फिर से सबको कुछ तो मंथन करना होगा,
वरना जीवन में यान्त्रिकता से गठबंधन करना होगा ।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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