हैं शेष प्रश्न,कुछ जीवन में,
जो अनुत्तरित ही रहते है,
प्रतिपल घटते इस जीवन में,
जो अनुगुंजित से रहते है,
जीवन की दीर्घ किताबों में,
कुछ तो खोया खोया सा है,
कही अपनी भाषा शून्य हुई,
कही भाव न्यून ही रहता है ।
प्रचलित शिक्षा के बोझ तले,
मानव कुचला कुचला सा है,
मानवीय मूल्य का पता नहीं,
सब कुछ उथला उथला सा है,
जो शिक्षा सबको देशप्रेम और करूणा नहीं सिखाती हो,
जो शिक्षा सबको बस केवल धन के पीछे दौड़ाती हो,
उस शिक्षा पर फिर से सबको कुछ तो मंथन करना होगा,
वरना जीवन में यान्त्रिकता से गठबंधन करना होगा ।
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह