लड़ना झगड़ना या रूठना मनाना ,
कोई डाँट खाए, तो उसको चिढ़ाना,
बहुत याद आता है बीता ज़माना,
वो हँसना हँसाना, वो रोना रुलाना ।
गुज़रता गया, जो पंख लगा के,
पलट के न आया, कभी याद आके।
बहनों के संग, जो बचपन बिताया,
जवानी बितायी ,ज़माना बिताया,
बहुत कुछ छिपाया, बहुत कुछ बताया ,
वो बीता ज़माना बहुत याद आया ।
याद आया कि बारिश में भींगे बहुत थे,
टूटी खटिया पे झूला भी झूले बहुत थे,
कच्ची अमिया छिपा करके खाना खिलाना,
बहुत याद आता है बीता ज़माना ।
कोई रोए,उसको मनाते बहुत थे,
यदि मान जाए,चिढ़ाते बहुत थे,
वो पल पल चिढ़ाना,वो पल पल हँसाना,
बहुत याद आता है बीता ज़माना ।
उन यादों की गठरी से क्या-क्या निकालूँ?
कुछ आँसू ,ठहाके या ख़ुशियाँ निकालूँ?
उन्हें टाँक लूँ,अपनी चादर में लेकर,
नींद आए तो सोऊँ,उन यादों को लेकर।
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह