आँखों में लिए प्रश्न बैठी ,इन्तज़ार की चौखट पर ,
वो समय कहाँ, कब आएगा ,जो मेरा भाग्य जगाएगा।
हिन्दी सबकी जननी है तो ,सब क्यूं जननी को भूल गए ,
जो अँधियारे में भटक रही , हम दीप जलाना भूल गए ।
है राह निहारे यहाँ वहाँ ,तकती आँखें अब पूछ रही ,
हम कब लौटेंगें घर वापस ,ये हिन्दी भाषा पूछ रही ।