योग दिवस

in poems

हिन्द की जब बात हो,

आस्था के मर्म में,

योग के संदर्भ में,

मानव की ऊर्जाओं का,

सफलता की चर्चाओं का,

तन मन योग सिक्त हो,

विश्व योग दीप्त हो,

प्राण का संधान हो,

विश्व का कल्याण हो,

प्रेम का उद्भाव हो,

माधुर्य का प्रभाव हो,

शत्रुता का अभाव हो,

हर प्राण में सद्भाव हो ।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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