महात्मा गांधी

in poems

गाँधी गाँधी कहते कहते,

हम सत्य अहिंसा भूल गये,

अपनी पीड़ा तो याद रही,

पर पीर पराई भूल गए,

अपने अधिकारों का परचम,

हर दम लहराना याद रहा,

पर स्व कर्म और राष्ट्र धर्म का,

दीप जलाना भूल गये,

शहीदों की तस्वीरों पर,

फूल चढ़ाना याद रहा,

पर भुला दिया आदर्शो को,

जिनकी ख़ातिर वो चले गये,

लें आज प्रतिज्ञा हम अपने,

अधिकारों से ऊपर उठ कर,

कर्तव्य की धारा प्रमुख करें,

हिंसा की धारा विमुख करें,

निष्काम कर्म का नारा हो,

सिर्फ सत्य वचन ही प्यारा हो,

तभी होगा सम्पूर्ण व्रत,

गाँधी के सपनों का भारत।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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