जीवन चक्र

in poems

आस-पास बिखरे रंगों में,
बादल पर्वत और उपवन में,
जीवन विस्तारित होता हर कण में,
इनमें गुंजित ध्वनियां देखो क्या कहती है?
कहती हैं, हर रंग में जीवन,
खिलता ही है,
उमड़ घुमड़ कर बादल सा मन,
खाली होता।
खाली होकर ऊपर उठता,
पर्वत सा फिर,और उपवन में,
फूलों सा मन, विकसित होता।
यही चक्र है, जीवन का,
विस्तारित होना, और
सदियों तक धरती पर,
प्रसारित होना।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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