भूली बिसरी बातें

in poems

इतने दिनों के बाद मिले हो,
कुछ भूली बिसरी बात करो,
कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो,
कुछ अपनेपन की बात करो,
सदियाँ बीती,अर्सा गुजरा,
फिर भी तुम बिल्कुल वैसे हो,
कुछ शरद शिशिर की बात करो,
कुछ ग्रीष्म ऋतु की बात करो,
बारिश से गीली सड़को पर,
वो नाव चलाना याद करो,
गुल्ली डंडो के खेलो की,
वो प्रात दोपहर याद करो,
अब वैसी होती प्रात नहीं,
अब वैसी होती बात नहीं,
जीवन के बंद किताबों में
अब मिश्री से मिठास नहीं,

जीवन के कड़वे पृष्ठों ने,
अवसादों का अध्याय दिया,
बारिश की बूंदो ने तो अब,
आँखों में ही स्थान लिया,
जो अनायास बह जाती है,
जाने कहाँ खो जाती है,
मन की तरलता को शायद,
एक खुश्की सी दे जाती है,
तुम अपनी कहो, तुम कैसे हो?
कुछ बदल गये, या वैसे हो,
तुमने जीवन को बदला है ?
या जीवन ने तुमको बदला है?

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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