इतने दिनों के बाद मिले हो,
कुछ भूली बिसरी बात करो,
कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो,
कुछ अपनेपन की बात करो,
सदियाँ बीती,अर्सा गुजरा,
फिर भी तुम बिल्कुल वैसे हो,
कुछ शरद शिशिर की बात करो,
कुछ ग्रीष्म ऋतु की बात करो,
बारिश से गीली सड़को पर,
वो नाव चलाना याद करो,
गुल्ली डंडो के खेलो की,
वो प्रात दोपहर याद करो,
अब वैसी होती प्रात नहीं,
अब वैसी होती बात नहीं,
जीवन के बंद किताबों में
अब मिश्री से मिठास नहीं,
जीवन के कड़वे पृष्ठों ने,
अवसादों का अध्याय दिया,
बारिश की बूंदो ने तो अब,
आँखों में ही स्थान लिया,
जो अनायास बह जाती है,
जाने कहाँ खो जाती है,
मन की तरलता को शायद,
एक खुश्की सी दे जाती है,
तुम अपनी कहो, तुम कैसे हो?
कुछ बदल गये, या वैसे हो,
तुमने जीवन को बदला है ?
या जीवन ने तुमको बदला है?