सर्द सर्द रातों में……!

in poems

सर्द सर्द रातों में, दर्द भरी यादों की ,
महफिलें जब सजती हैं ,
ओस बिखर जाते हैं , आसमां के रोने में,
अश्रु जम से जाते हैं ,आंखों के सोने में ,
तुम जहां भी जाओगे, दुनिया के कोने में ,
दूर ना कर पाओगे, मुझ में खुद के होने में ।वक्त ठहर जाता है ,जिनकी एक आहट में,
वो निकल ही जाते हैं, सपनों को ढोने में। ठहरो, वहां चलते हैं ,वक्त जहां रहता है ,
नीम के दरख़्तों में, मंद मंद बहता है।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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