अंतर्भाव

in poems

जीवन के अर्ध शतक पर अब…,
कुछ अंतर्मन की बात लिखे,
कुछ कोमल अंतर्भाव लिखे,
कुछ कटुता के अनुभाव लिखे,
कहना सुनना तो बहुत हुआ ,
कुछ अनचीन्हे मनोभाव लिखे,
जो कह न सके, अब तक तुमसे,
वो अनकहा प्रतिवाद लिखे।
वो भी तो एक ज़माना था,
गर्मी की लम्बी रातो में,
घर के छत पर, जाकर, छुपकर,
सपनों के उड़नखटोले पर,
उड़ते, गिरते, हँसते,रोते,
उन अल्हड़ पल की बात लिखे ।

दिन बीत गये जो , अच्छे थे,
जैसे थे, फिर भी सच्चे थे,
अब याद पुरानी शेष रही,
सपनों के उड़नखटोलो की,
गुल्ली डंडो के खेलो की ,
दिन सिमट गये दिनचर्या मे,
राते स्याह अंधेरो में,
फुर्सत के पल अब रहे नही,
बेफिक्री जाने कहाँ गई ?
आओ मिलकर फिर बैठे,
कुछ पल में खुद को, फिर जी ले,
जीवन के रिक्त प्यालो में
यादो के मधुरस को पी ले ।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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