जीवन के अर्ध शतक पर अब…,
कुछ अंतर्मन की बात लिखे,
कुछ कोमल अंतर्भाव लिखे,
कुछ कटुता के अनुभाव लिखे,
कहना सुनना तो बहुत हुआ ,
कुछ अनचीन्हे मनोभाव लिखे,
जो कह न सके, अब तक तुमसे,
वो अनकहा प्रतिवाद लिखे।
वो भी तो एक ज़माना था,
गर्मी की लम्बी रातो में,
घर के छत पर, जाकर, छुपकर,
सपनों के उड़नखटोले पर,
उड़ते, गिरते, हँसते,रोते,
उन अल्हड़ पल की बात लिखे ।
दिन बीत गये जो , अच्छे थे,
जैसे थे, फिर भी सच्चे थे,
अब याद पुरानी शेष रही,
सपनों के उड़नखटोलो की,
गुल्ली डंडो के खेलो की ,
दिन सिमट गये दिनचर्या मे,
राते स्याह अंधेरो में,
फुर्सत के पल अब रहे नही,
बेफिक्री जाने कहाँ गई ?
आओ मिलकर फिर बैठे,
कुछ पल में खुद को, फिर जी ले,
जीवन के रिक्त प्यालो में
यादो के मधुरस को पी ले ।