वो चार शेर ही काफी थे,
जिनकी जड़े हिलाने को,
इसलिए पीठ पर वार किया,
औकात न थी, आजमाने को।
जगे शेर से पंगा ले,
ये कायर की औकात नहीं,
छल छद्म ही जिनके खून में है,
उन्हें सबक दे, सौगात नहीं।
हुए हैं दो दो हाथ,जब जब,
मानवता हारी है, अब उठो,
युद्ध उदघोष करो, कि,
कुरुक्षेत्र की बारी है।