ओ,सखि………!

in poems


बात दिल की तुम अपनी,

छुपाया न करो।

बात जो भी हो,

वो तुम बताया करो।

बातों बातों में ही,

रूठ जाती हो,

दर्द के समंदर में,

डूब जाती हो।

कभी रेत के सहरा पे भी,

आ जाया करो।

रेत में भी खिलते हैं,

कांटों पे फूल,

जिन्हें देखकर उम्मीदें,

जगाया करो।

हर बात  का अपना,

एक वक्त होता है,

बेवक्त आंसू न बहाया करो।

हर दर्द को तुम,

कलम की स्याही बना कर,

दुनिया को कुछ लिखकर,

दिखाया करो।

हकीकत में ग़र पांव जलते हो,

तो ख्व़ांबो की सैर कर आया करो।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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