बात दिल की तुम अपनी,
छुपाया न करो।
बात जो भी हो,
वो तुम बताया करो।
बातों बातों में ही,
रूठ जाती हो,
दर्द के समंदर में,
डूब जाती हो।
कभी रेत के सहरा पे भी,
आ जाया करो।
रेत में भी खिलते हैं,
कांटों पे फूल,
जिन्हें देखकर उम्मीदें,
जगाया करो।
हर बात का अपना,
एक वक्त होता है,
बेवक्त आंसू न बहाया करो।
हर दर्द को तुम,
कलम की स्याही बना कर,
दुनिया को कुछ लिखकर,
दिखाया करो।
हकीकत में ग़र पांव जलते हो,
तो ख्व़ांबो की सैर कर आया करो।