मैं हिंदी भाषा हूं, आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है ।लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था ,मैंने जीवन का बेहद सुनहरा दौर भी देखा है। मैंने महादेवी वर्मा ,जयशंकर प्रसाद और निराला जैसे महान छायावादी कवियों का दौर भी देखा है । वो मेरी खुशनुमा तरुणाई का दौर था ,बहुत याद आती है ।उस वक्त की रौनकें। मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विसंगतियों तथा मधुर कषाय अनुभूतियों को कलमबद्ध करते कवि और लेखकों का वो दौर ,अब सिर्फ मेरी स्मृतियों के कोषागार की शोभा बढ़ाता है ।मैंने सुना है ,कि प्रार्थनाएं काम करती हैं, तो चलो ना ,सभी भारतवासी मिलकर उसी सुनहरे भाषाई दौर की वापसी की दुआएं करते हैं। मेरी ये व्यथा यदि जनमानस की सुप्त संवेदनाओं को जागृत कर पाए ,तो यही मेरा अहिल्या सदृश उद्धार होगा।
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह