माँ तू चली गयी
और पीछे छोड़ गयी
गहरी पीड़ा की रेख
अवसादों का कुञ्ज
जिसे अब तू कभी न पायेगी देख
ईश्वर के दरबार में तेरा हो अभिषेक
निर्वासित सा जीवन जीकर
सुख दुःख से निर्लिप्त
रही परिजनों से अतृप्त
शिव की नगरी काशी में
कर के जीवन दान
परमपिता के चरणो में
अब हो तेरा नया विहान
जीवन के अवसान में
एकाकीपन का दंश
रहा देता तेरा वंश
क्रूरता के वेश में
लोग रहते जिस देश में
आना मत उस परिवेश में
दुखों का जहाँ खजाना है
पीड़ा का आना जाना है ।
चाहत
मिस्टर बागची रोज़ की तरह भ्रमण के लिए निकले, तो एक छोटा मरियल सा पिल्ला उनके