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Feeling - page 3

विडंबना

in poems

रक्तिम है कुरुक्षेत्र की माटी , चीख रही है अब भी घाटी, कर्तव्यों से आंख मूंदकर, बन जाना गांधारी , ऐसी थी क्या लाचारी ? लालच के दावानल, जब अपनों को झुलसाएंगे , कलयुग की इस विडंबना में, कृष्ण कहां से आएंगे ? सिंहासन पर यदि विराजित, धृतराष्ट्र हो जाएंगे , प्रतिभाओं के चीरहरण पर…

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तेरा जाना…….|

in poems

तेरे जाने की धुन सुनकर , वसंत कहीं रुक जाता है, आंखों का आंसू ओसबिंदु बन, घासों पर बिछ जाता है । शिशिर ऋतु है ,तेज हवा , सूरज की आंख मिचौली है। है भींगें से कुछ नयन  और, होठों पर हंसी ठिठोली है । आंखों में आंसू रुक जाता, तो कोहरा कोहरा दिखता है…

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दोषी कौन ?

in Stories

राघव की उम्र यही कोई 18 वर्ष की रही होगी ,घर में सिर्फ दादी और पोता राघव |आपस में लड़ते झगड़ते, लाड़- दुलार करते ,हंसी-खुशी के पल बिता रहे थे |लेकिन अचानक दादी की तबीयत बिगड़ी और वेैद्य ने उनके अंतिम समय का एलान कर दिया |अब दादी को यह चिंता हो गई कि, राघव…

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तलाश

in poems

महलों की सिसकती दीवारों को, कौन शब्द दे पाएगा? स्वर्ण दिनारों के शोरगुल में , दर्द दफन हो जाएगा | रत्न जड़ित वस्त्रों की चकमक , सेवक, दासों का दल बल , अंतर्मन की पीड़ा पर , मरहम कौन लगाएगा ? श्वासों पर भी पहरे जिनके, हंसी पे ताले जड़ते हो, ऐसी घुटती श्वांसों का, शोर…

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फिक्र

in poems

है फिक्र उन्हे मेरी कितनी, ये मुझको भी मालूम नही, लोगों से कहते फिरते हैं, क्या कहते हैं, मालूम नही| है जेब गरम उनकी कितनी, ये बतलाना होता है, मेरी जेबों के छेदों को, गिनकर जतलाना होता है|   पैसों की गर्मी अहंकारवश, कब शोला बन जाती है! रावण की सोने की लंका, कब मिट्टी…

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आरक्षण

in poems

स्वतंत्रता की स्वर्ण-जयन्ती को, बीत गए कई साल। जातिवाद के आरक्षण से, प्रतिभाएं अब भी बेहाल। श्रम का हो सम्मान, सभी को अवसर मिलें समान। अभिनन्दित हो युवा देश का, हो प्रतिभाएं गतिमान। एक बार फिर ज्ञानमार्ग जब, प्रक्षालित हो जाएगा। फिर से अपना देश,ये “भारत” विश्व गुरु बन जाएगा।

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सावन

in poems

मन ने फिर आवाज लगाई, अब तो रहे न बाबा-आई। जो कहते सावन में आओ, भाई को राखी बंधवाओ। इस आमंत्रण से गर्वित हो, जब-जब मैं पीहर को जाती, आंखों में नेह-अश्रु लिए तब, बाबा-आई को मैं पाती। न वैसा आमंत्रण है,अब। न वैसा त्योहार……। सम्बन्धों के खालीपन से, अनुगुंजित आवास……।

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बात

in poems

बात निकली है तो, बात पे बात निकलेगी। बीती बातों की पूरी, बारात निकलेगी। शिकवा उनको भी है, शिकायत हमको भी है। बढ़ेगी जो बात तो, आंखों से बरसात निकलेगी भावों के पत्ते तो, झड़ ही गये। हो दिल में बची आस, तो मुलाकात निकलेगी।

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रिश्तों के हिम

in poems

जो मैंने कहा था, वो आप ने सुना नही, जो मैंने कहा नहीं, वो आप ने सुना था। रिश्तों के ये जो बाने हैं, वो हमने खुद ही ताने है। थोड़ा थोड़ा आगे बढ़कर, रिश्तों के हिम को पिघलाएं, मैं थोड़ा सा आगे आऊं, वो थोड़ा सा पीछे जाएं, फिर अपने इस तालमेल को, ये…

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बरखा रानी

in poems

बरखा रानी तेरा पानी, हर मन को हरषाता। तेरा आना उमड़ घुमड़ कर, तन पुलकित हो जाता। बरखा बोली, ‘धरती रानी’, तेरा जीवन,मेरा पानी, फिर क्यूं व्यर्थ बहाती, ज्यादा बरसूं, कद्र नहीं, कम बरसूं, तो सब्र नहीं।  

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