मन ने फिर आवाज लगाई,
अब तो रहे न बाबा-आई।
जो कहते सावन में आओ,
भाई को राखी बंधवाओ।
इस आमंत्रण से गर्वित हो,
जब-जब मैं पीहर को जाती,
आंखों में नेह-अश्रु लिए तब,
बाबा-आई को मैं पाती।
न वैसा आमंत्रण है,अब।
न वैसा त्योहार……।
सम्बन्धों के खालीपन से,
अनुगुंजित आवास……।