महलों की सिसकती दीवारों को,
कौन शब्द दे पाएगा?
स्वर्ण दिनारों के शोरगुल में ,
दर्द दफन हो जाएगा |
रत्न जड़ित वस्त्रों की चकमक ,
सेवक, दासों का दल बल ,
अंतर्मन की पीड़ा पर ,
मरहम कौन लगाएगा ?
श्वासों पर भी पहरे जिनके,
हंसी पे ताले जड़ते हो,
ऐसी घुटती श्वांसों का,
शोर कौन सुन पाएगा ?
स्वर्ण चमक यदि तप्त हृदय को,
थोड़ी राहत दे पाए ,
चांदी की खनक, यदि तृषित हृदय की,
थोड़ी प्यास बुझा पाए ,
फिर तो इस पूरी दुनिया में ,
सुख की तलाश ही मिट जाए!