आरक्षण

in poems

स्वतंत्रता की स्वर्ण-जयन्ती को,

बीत गए कई साल।

जातिवाद के आरक्षण से,

प्रतिभाएं अब भी बेहाल।

श्रम का हो सम्मान,

सभी को अवसर मिलें समान।

अभिनन्दित हो युवा देश का,

हो प्रतिभाएं गतिमान।

एक बार फिर ज्ञानमार्ग जब,

प्रक्षालित हो जाएगा।

फिर से अपना देश,ये “भारत”

विश्व गुरु बन जाएगा।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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