शेष प्रश्न
हैं शेष प्रश्न,कुछ जीवन में, जो अनुत्तरित ही रहते है, प्रतिपल घटते इस जीवन में, जो अनुगुंजित से रहते है, जीवन की दीर्घ किताबों में, कुछ तो खोया खोया सा है, कही अपनी भाषा शून्य हुई, कही भाव न्यून ही रहता है । प्रचलित शिक्षा के बोझ तले, मानव कुचला कुचला सा है, मानवीय मूल्य…