ख़ौफ ए क़हर

in poems

सन्नाटे चीख रहे,

और ध्वनियां हुई मौन है।

मानवता को लील रहा, जो

ऐसा दानव कौन हैं?

जीवो पर निर्ममता, आखिर

अपना रुप दिखाएगी ही,

ख़ौफ़ ए क़हर का मतलब भी,

दुनिया को समझाएगी भी।

निर्दयता के चरम बिन्दु को,

छूकर भी जो गर्वित है।

उनको अपने अणुमात्र से,

ऐसा सबक सिखाएगी भी।

ये प्रकृति सबकी माता है,

जीवों को न्याय दिलाएगी ही ।

 

 

 

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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