प्रतिपल घटते इस जीवन में,
सोच रही थी खड़ी खड़ी,
संग्रह करने की चाहत क्यों,
करता इंसां घड़ी घड़ी,
खाली हाथ ही आया है जो ,
खाली हाथ ही जाएगा,
कर्मों का लेखा जोखा ही,
स्मृतियों में रह जाएगा।
महल, दुमहले ,घोड़े, हाथी,
नहीं बनेंगे तेरे साथी,
करुणा ,परोपकार की थाती,
मुक्ति मार्ग दिखलाएगा।
जलबिंदु सा जीवन कब ये,
वाष्प बन उड़ जाएगा,
कब जन्मा? कब खत्म हुआ ये?
कोई जान न पायेगा।