मुक्तिमार्ग

in poems

प्रतिपल घटते इस जीवन में,

सोच रही थी खड़ी खड़ी,

संग्रह करने की चाहत क्यों,

करता इंसां घड़ी घड़ी,

खाली हाथ ही आया है जो ,

खाली हाथ ही जाएगा,

कर्मों का लेखा जोखा ही,

स्मृतियों में रह जाएगा।

महल, दुमहले ,घोड़े, हाथी,

नहीं बनेंगे तेरे साथी,

करुणा ,परोपकार की थाती,

मुक्ति मार्ग दिखलाएगा।

जलबिंदु सा जीवन कब ये,

वाष्प बन उड़ जाएगा,

कब जन्मा? कब खत्म हुआ ये?

कोई जान न पायेगा।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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