समय से संवाद

in poems

समय मंद मंद बहो न,

अविरल गति से चल चल कर,

क्यों थकते नही कहो न,

आदि से अनादि तक,

क्यों करते रहते शंखनाद?

जीवन के संघर्षो को,

क्यों निर् निमेष तकते रहते?

द्वापर का ये काल  नही है,

कान्हा सा अवतार नही है,

अनाचार के दावानल को,

कौन रोके, कहो न…,

समय मंद मंद बहो न।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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