एहसास

in poems

एक गीत…

खुद पे लिखूँ,

दिल करता है बहुत,

इन दिनों,

खुद से खो जाने का,

खतरा है बहुत,

जिन्हें देखा, जिन्हें परखा,

उन्हें चाहा है बहुत,

बात इतनी सी है,

प्यार उन्हें अखरा है बहुत,

जिनके आने तक,

नींद ने न दी दस्तक,

उन्हें शिकायत है कि,

उन पर मेरी आँखों का,

पहरा है बहुत।

मेरे ख्वाबों में जो,

कभी चैन से रहा करते थे,

वे कहते है अब,

ख्वाबों से खतरा है बहुत।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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