द्रौपदी की व्यथा

in poems

अरे! केशव…,आओ न,

प्रतीक्षारत नयन मेरे,

भींगे भींगे से क्यूँ है ?

बताओ न…,

घाव गहरे है, जीवन पे पहरे है,

अगर लगा सको तो,

थोड़ी मरहम लगाओ न,

केशव…,आओ न,

आगत भविष्य तो पता नही,

बीता अतीत भी रिसा नही,

बूँद बूँद जो रीत रहा जीवनघट,

वो भर जाओ न,केशव…,आओ न,

कुछ पल साथ बिताओ न,

देखो…, वो दूर …, आसमान में  फैले,

सतरंगी धनुओ को,

मेरा जीवन क्यूँ  श्वेत श्याम… है?

बताओ न…केशव…,आओ न |

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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