उर्मिला बोली लक्ष्मण से,
व्यथित हृदय पर मृदु वचन से,
तुमको भाई का साथ मिला,
मुझे महलों का वनवास मिला,
दोष बता जाते मेरे,
तो दूर उन्हें मैं कर पाती,
फिर संग तुम्हारे जा पाती,
और साथ तुम्हारे रह पाती,
यूं बिना कहे तुम चले गए,
इस भवसागर में छोड़ गए,
किस से पूछूं किस हाल में हो,
या स्मृतियों के जाल में हो,
यदि कर्तव्य, प्रथम है श्रेष्ठ भाव,
तो मेरे भी पूर्ण करो अभाव|