जीवन की साँझ और तन्हाईयो का डेरा सूरज की रोशनी पर है बादलो का घेरा मन मेरा कर रहा क्यूँ यादों के घर का फेरा राहों पे चलते चलते बड़ी दूर आ गये है कोई मुझे बताए घर का पता जो मेरा दम भर के साँस ले लूँ दुनिया शोर गुल का मेला ।
ज़िन्दगी में आगे जैसे ही बढ़ते चले गये, कदमों के निशां खुद ही मिटते चले गये, किसी ने मुझे पीछे पुकारा ज़रूर था, वो आवाज़ दुनिया के शोर में घुटते चले गये। बढ़ते हुए कदम ने, ला खड़ा किया जहाँ, उस अर्श से अब फर्श भी दिखता नहीं मुझे, तारीख की गुस्ताख़ियां तो देखिये हुज़ूर, ग़र…
जीवन के अर्ध शतक पर अब…, कुछ अंतर्मन की बात लिखे, कुछ कोमल अंतर्भाव लिखे, कुछ कटुता के अनुभाव लिखे, कहना सुनना तो बहुत हुआ , कुछ अनचीन्हे मनोभाव लिखे, जो कह न सके, अब तक तुमसे, वो अनकहा प्रतिवाद लिखे। वो भी तो एक ज़माना था, गर्मी की लम्बी रातो में, घर के छत…