ज़िन्दगी में आगे जैसे ही बढ़ते चले गये,
कदमों के निशां खुद ही मिटते चले गये,
किसी ने मुझे पीछे पुकारा ज़रूर था,
वो आवाज़ दुनिया के शोर में घुटते चले गये।
बढ़ते हुए कदम ने, ला खड़ा किया जहाँ,
उस अर्श से अब फर्श भी दिखता नहीं मुझे,
तारीख की गुस्ताख़ियां तो देखिये हुज़ूर,
ग़र वक़्त हो तो आइना भी देखिये ज़रूर,
चेहरे की झुर्रियों में, जीवन का सार है
तन्हाइयों में आज भी रोता सितार है ।