जीवन यात्रा

in poems

ज़िन्दगी में आगे जैसे ही बढ़ते चले गये,
कदमों के निशां खुद ही मिटते चले गये,
किसी ने मुझे पीछे पुकारा ज़रूर था,
वो आवाज़ दुनिया के शोर में घुटते चले गये।

बढ़ते हुए कदम ने, ला खड़ा किया जहाँ,
उस अर्श से अब फर्श भी दिखता नहीं मुझे,
तारीख की गुस्ताख़ियां तो देखिये हुज़ूर,
ग़र वक़्त हो तो आइना भी देखिये ज़रूर,

चेहरे की झुर्रियों में, जीवन का सार है
तन्हाइयों में आज भी रोता सितार है ।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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