रक्तिम है कुरुक्षेत्र की माटी ,
चीख रही है अब भी घाटी,
कर्तव्यों से आंख मूंदकर,
बन जाना गांधारी ,
ऐसी थी क्या लाचारी ?
लालच के दावानल,
जब अपनों को झुलसाएंगे ,
कलयुग की इस विडंबना में,
कृष्ण कहां से आएंगे ?
सिंहासन पर यदि विराजित,
धृतराष्ट्र हो जाएंगे ,
प्रतिभाओं के चीरहरण पर ,
भीष्म मौन हो जाएंगे,
कुरुक्षेत्र फिर सज्जित होगा ,
शांतिदूत न आएंगे।