तेरे जाने की धुन सुनकर ,
वसंत कहीं रुक जाता है,
आंखों का आंसू ओसबिंदु बन,
घासों पर बिछ जाता है ।
शिशिर ऋतु है ,तेज हवा ,
सूरज की आंख मिचौली है।
है भींगें से कुछ नयन और,
होठों पर हंसी ठिठोली है ।
आंखों में आंसू रुक जाता,
तो कोहरा कोहरा दिखता है ।
धुंधला जाती है दृष्टि और ,
श्यामल श्यामल सा दिखता है ।
कैसे कह दूं ,कि मत जाओ ।
जीवन के पथ पर रुक जाओ ,
रुकना जीवन का ध्येय नहीं,
जब चलते रहना जीवन है।