मिस्टर बागची रोज़ की तरह भ्रमण के लिए निकले, तो एक छोटा मरियल सा पिल्ला उनके पीछे-पीछे चलता हुआ न जाने कहां से आ गया।बहुत पीछा छुड़ाने की कोशिश करने पर भी उसने पीछे आना न छोड़ा। तो मिस्टर बागची ने उसे एक छोटी सी दुकान जो सुबह-सुबह खोलने की प्रक्रिया में दुकानदार झाड़ू लगा रहा था, उससे बिस्कुट खरीद कर उस पिल्ले को डाल दिया। पिल्ला बहुत भूखा मालूम होता था,क्योंकि मिस्टर बागची बिस्कुट डालते जाते और कुत्ते का बच्चा कुछ सेकेंड में ही उसे चट कर जाता। पूरा पैकेट खाने के बाद भी फिर से वो मिस्टर बागची के पीछे-पीछे आने लगा।
मिस्टर बागची जल्दी-जल्दी चलकर अपने घर पहुंचे और अपने घर का लोहे का गेट बंद कर लिया। कुत्ते का बच्चा भी वही आसन जमाकर बैठ गया।अगले दिन प्रातःकाल जब मिस्टर बागची भ्रमण के लिए बाहर निकले , तो कुत्ते का बच्चा उनके गेट पर ही बैठा हुआ मिला। अब तो जैसे उसने ठान ही लिया था, कि मिस्टर बागची का साथ उसे जीवन भर निभाना है। दो तीन दिनों तक तो मिस्टर बागची उसे नज़रअंदाज करने की कोशिश करते रहे , लेकिन उसके निःस्वार्थ प्रेम के आगे उन्होंने भी हथियार डाल दिया। फिर उसे घर में लाया गया, नहलाया गया,खाना खिलाया गया और नाम रखा गया ‘चाहत ‘, जो एक मादा श्वान थी।
चाहत के तो दिन ही फिर गए। धीरे धीरे चाहत बड़ी होने लगी ,अच्छे खान-पान और देख भाल के कारण उसकी आंखो में चमक और चाल में आत्मविश्वास आ चुका था, बेचारगी दूर जा चुकी थी। उसकी हमेशा कोशिश रहती थी,कि मिस्टर बागची उसकी नज़रों के सामने चौबीसो घण्टे रहे, वैसे तो मिस्टर बागची रिटायर फौजी थे, और अपने बड़े से घर में अकेले ही रहते थे। लेकिन जब से चाहत मिस्टर बागची के जीवन का हिस्सा बनी थी ,तब से वो काफी खुश रहा करते थे। घर में चाहत के आने से पहले सन्नाटे गूंजा करते थे ,लेकिन जब से चाहत क साथ मिला था , तब से घर में गुनगुनानें और सीटी बजाने की ध्वनियों ने सन्नाटों को मौन कर दिया था ।
जब मिस्टर बागची समाचारपत्र पढ़ते तो बगल मे बैठी चाहत उन्हे बिना पलक झपकाए देखती रहती ,मानो कह रही हो , कि मुझे भी तो समाचार सुनाओ ,और मानो मिस्टर बागची उसके मन की बात समझ जाते और जोर जोर से समाचारपत्र पढ़ने लगते ,तब चाहत भी अपनी पूंछ हिलाकर बीच-बीच में हल्के स्वर में भौंककर मानो अपनी सहमति देती रहती ,जैसे कह रही हो ,कि अब ठीक है , मुझे चुप्पी पसंद नही। इस प्रकार जब वो टी.वी.पर अपने पसंदीदा कार्यक्रम देखते ,तब भी वो साथ में बैठकर कार्यक्रम का आनंद लेती थी ।और भोजन का हाल ये कि जब तक मिस्टर बागची स्वयं अपना भोजन लेकर खाना आरम्भ न कर दें , तब तक चाहत भी अपने खाने को मुंह न लगाती थी।
पशु पक्षियों के पास भले ही भाषा का विस्तार नही होता लेकिन भावों का विराट संसार अवश्य होता है ,और जिसके साथ उनकी भावनाएं जुड़ जाती है,मरते दम तक ईश्वर भी उसे बदलने में असमर्थ होते है ।चाहत की दुनिया तो मिस्टर बागची से शुरु होकर उन्ही पर खत्म होती थी।
जून का अन्तिम सप्ताह चल रहा था,शाम को सूर्यास्त के बाद मिस्टर बागची चाहत के साथ घर के पास वाले उद्यान में घूमने के लिए चल दिए, तभी सामने से आती तेज रफ्तार कार ने चाहत को ज़ोरदार टक्कर मारी ,जिससे वो उछलकर दूर जा गिरी,उसका सिर फट चुका था ,खून चारो ओर फैल चुका था ।मिस्टर बागची के चीखने चिल्लाने से लोग तो इकठ्ठे हो गए, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी ,चाहत की साँसे थम गई थी ।
मिस्टर बागची चाहत के पार्थिव शरीर का क्रियाकर्म करके घर वापस तो आ गए ,लेकिन अब घर तो जैसे उन्हे काट खाने को दौड़ रहा था।हर तरफ चाहत की यादें बिखरी हुई थी।उसके दो वर्षो के साथ ने उनके जीवन में जो जान डाली थी ,वो अब बेजान हो चुकी थी।
वो घर के बाहर जाते ,तो उन्हे ऐसा लगता जैसे वो उनके साथ साथ चल रही हो।कभी कभी चौंक कर उनके मुंह से उसका नाम भी निकल जाता ,तत्क्षण याद आता कि वो तो अब इस दुनिया से जा चुकी है।
चाहत की अनुपस्थिति ने उनके जीवन को एक बार फिर सन्नाटों से भर दिया था , और इन्ही सन्नाटों के शोर ने कुछ ही महीनों बाद उनकी भी साँसें छीन ली ।
ऐसी घटनाएं भी दुनिया को ये सबक सीखाती हैं ,कि जीव का जीव के प्रति करुणा और प्रेम का भाव ही मृतप्राय जीवन को संजीवनी देता है ।