गणतंत्र के उपासक ,
हम लोग जानते हैं ,
बंधुत्व की ध्वजा का ,
हर रंग पहचानते हैं ,
प्रकृति ने जब से भेजा ,
हम सबको इस धरा पर ,
तब से ही हम लहू का,
भी रंग जानते हैं ।
काला हो या हो गोरा ,
सूरते पंथ भी अलग हो ,
इंसानियत का फिर भी,
हम मोल जानते हैं ।
हर जीव पर हो करूणा,
जीने का हक सभी को,
गणतंत्र के दिवस पर ,
इस प्रण को मानते हैं |
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह