शिक्षा का बाज़ार

in poems

अध्यापन व्यवसाय बन गया

अध्यापक सामान,

शिक्षा का बाज़ार बन गया,

बिक्री-खरीद हुई आसान।

बड़े- बड़े पोस्टर में सज गए

विद्यालय के भवन,

ज्ञान की बातें गौण हुई अब

नैतिकता का हवन।

बड़े-बड़े भवनों में बैठे

शिक्षा के व्यापारी,पहले आओ

पहले पाओ की है पूरी तैयारी।

प्रतिभावान बेहाल भटकते

है कितनी लाचारी !

भ्रष्टाचार की बलि चढ़े अब

न जाने किसकी है बारी ?

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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