चंदा की लोरी

in poems

चंदा जब तुम निशाकाल में आना,
मेरे प्यारे लल्ला को,
लोरी गाकर सुनाना,
जिसमें हो इस देश की बातें,
देश के गौरव गान की बातें,
षड् ॠतुओं की सौगातें,
उसको तुम बताना,
जब तुम निशा काल में आना ।
पर्वत नदियाँ झरनें सागर,
पूरित जिनसे देश का गागर,
निर्मल पावन रखने को,
उसको तुम सिखाना,
जब तुम निशाकाल में आना ।
स्वर्णिम था इतिहास हमारा,
वेदों ने था जिसे सँवारा |
फिर से वैदिक मंत्रों का,
आवाहन करना होगा,
उस को तुम बताना,
जब तुम निशाकाल में आना ।
त्याग की महिमा उसे बताना,
संग्रह से तुम उसे बचाना,
परोपकार, करुणा से भरकर,
देश प्रेम तुम उसे सिखाना,
योगदान करना होगा,
उसको तुम बताना,
जब तुम निशाकाल में आना ।
अमृत पुत्र बने हम सब फिर,
हो ऐसा व्यवहार,
चंदा मामा लेकर आओ,
ऐसा ही उपहार |

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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