दुनियादारी

in poems

कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है।
ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना है।
जब साथ हो अधूरा ,तो लोग मचलते हैं।
जख्मों पर छिड़कने को, नमक लेकर ही चलते हैं ।
घर में खुशी हो ,चाहे गम की हवा बही हो।
देकर बुलावा घर में ,अनजान से रहते हैं।
जब याद दिलाते हैं, हम हैं यहां उपस्थित ।
तब हाव-भाव उनके तिरस्कार ही करते हैं।
मुझे समझ ना आती, ये कैसी दुनियादारी ?
दिखने में रिश्ते गहरे ,पर दिल को करते भारी।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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