कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है।
ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना है।
जब साथ हो अधूरा ,तो लोग मचलते हैं।
जख्मों पर छिड़कने को, नमक लेकर ही चलते हैं ।
घर में खुशी हो ,चाहे गम की हवा बही हो।
देकर बुलावा घर में ,अनजान से रहते हैं।
जब याद दिलाते हैं, हम हैं यहां उपस्थित ।
तब हाव-भाव उनके तिरस्कार ही करते हैं।
मुझे समझ ना आती, ये कैसी दुनियादारी ?
दिखने में रिश्ते गहरे ,पर दिल को करते भारी।
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह